आज के समय में जब पारंपरिक खेती से पर्याप्त आमदनी नहीं हो पा रही है, ऐसे में आधुनिक और औषधीय फसलों की खेती किसानों को एक नया रास्ता दिखा रही है। ऐसा ही एक फल है सफेद जामुन, जिसकी न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी जबरदस्त मांग है। यह फल किसानों के लिए कम लागत में ज्यादा कमाई का साधन बनता जा रहा है।
400 रुपये किलो बिकने वाला फल
सफेद जामुन का बाजार मूल्य 400 से 500 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाता है, जो इसे अन्य फलों की तुलना में अधिक लाभकारी बनाता है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है और यह बैंगनी जामुन की तरह दिखता जरूर है, लेकिन इसका रंग सफेद और आकर्षक होता है। सफेद जामुन को ‘व्हाइट जावा प्लम’ के नाम से भी जाना जाता है।
विदेशों में भी भारी मांग
सफेद जामुन की खासियत यह है कि इसमें औषधीय गुणों की भरमार होती है। खासकर यह मधुमेह रोगियों के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है। यही कारण है कि इसकी मांग अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी तेजी से बढ़ रही है, जिससे इसे उगाने वाले किसान अच्छी-खासी कमाई कर पा रहे हैं।
कहां होती है सफेद जामुन की खेती?
पहले यह फल मुख्यतः ओडिशा जैसे राज्यों में उगाया जाता था, लेकिन अब इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य राज्यों में भी किसान इसकी खेती करने लगे हैं। यह कम पानी, कम खाद और न्यूनतम देखभाल में भी अच्छा उत्पादन देता है।
सफेद जामुन की खेती के लिए जरूरी बातें
अनुकूल जलवायु
सफेद जामुन की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे अच्छी होती है। यह गर्म और आर्द्र जलवायु में बेहतरीन फलता है।
उचित मिट्टी
अच्छी जलनिकासी वाली दोमट या बलुई मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का pH 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
तापमान और पानी
25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। पेड़ों को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती, जिससे सिंचाई की लागत भी कम आती है।
पौधों की तैयारी और रोपाई
- पौधे बीज या ग्राफ्टिंग के माध्यम से तैयार किए जा सकते हैं।
- इन्हें नर्सरी में 1-2 वर्षों तक तैयार किया जाता है।
- पौधों को 6×6 मीटर की दूरी पर रोपें ताकि वे खुले में अच्छे से विकसित हो सकें।
- मानसून का मौसम रोपण के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है।
खाद और कीटनाशक
इसकी खेती में जैविक खाद का उपयोग करना बेहतर होता है और रासायनिक कीटनाशकों का न्यूनतम प्रयोग करने की सलाह दी जाती है, ताकि फसल सुरक्षित और सेहतमंद बनी रहे।
जैविक खेती को बढ़ावा
सफेद जामुन की खेती में जैविक खाद का उपयोग करें और रासायनिक कीटनाशकों से बचें। यह न सिर्फ उत्पादन को सुरक्षित बनाता है, बल्कि उपभोक्ताओं की सेहत के लिए भी लाभकारी होता है।
कम लागत, ज्यादा मुनाफा
सफेद जामुन की खेती में न तो ज्यादा पानी की जरूरत होती है और न ही अधिक खाद या कीटनाशकों की। इसी कारण इसमें लागत काफी कम आती है, जबकि बाजार में इसकी कीमत अधिक मिलती है। यही कारण है कि यह किसानों के लिए एक मुनाफे वाला विकल्प बन चुका है।
सफेद जामुन की खेती किसानों के लिए एक नई दिशा और बेहतर आमदनी का जरिया बन सकती है। इसकी विदेशी मांग, औषधीय महत्व और कम लागत वाली खेती इसे एक लाभकारी विकल्प बनाती है। अगर आप भी खेती में बदलाव लाना चाहते हैं, तो सफेद जामुन एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है।